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तं गोभि॒र्वृष॑णं॒ रसं॒ मदा॑य दे॒ववी॑तये । सु॒तं भरा॑य॒ सं सृ॑ज ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

taṁ gobhir vṛṣaṇaṁ rasam madāya devavītaye | sutam bharāya saṁ sṛja ||

पद पाठ

तम् । गोभिः॑ । वृष॑णम् । रस॑म् । मदा॑य । दे॒वऽवी॑तये । सु॒तम् । भरा॑य । सम् । सृ॒ज॒ ॥ ९.६.६

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:6» मन्त्र:6 | अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:27» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:6


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) उक्त परमात्मा को (वृषणम्) जो कामनाओं का देनेवाला है (मदाय) आह्लाद के लिये (रसम्) रसरूप है (देववीतये) ऐश्वर्य उत्पन्न करने के लिये (भराय) धारण करने के लिये (सुतम्) स्वतःसिद्ध उस परमात्मा को (संसृज) ध्यान का विषय बनाओ ॥६॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा उपदेश करता है कि हे जीव तू सर्वोपरि ब्रह्मानन्द के देनेवाले ब्रह्मा को एकमात्र लक्ष्य बनाकर उस के साथ तू अपनी चित्तवृत्तियों का योग कर, इसका नाम आध्यात्मिक योग है। रस के अर्थ यहाँ ब्रह्मा के हैं, किसी रसविशेष के नहीं, क्योंकि “रसो वै सः रसं ह्येवायं लब्ध्वा आनन्दी भवति” तै० २। ७। अर्थात् वह ब्रह्मा आनन्दस्वरूप है और उसके आनन्द को लाभ करके जीव आनन्दित होता है ॥६॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) पूर्वोक्तं परमात्मानं (वृषणम्) कामपूरकम् (मदाय) आह्लादाय (रसम्) रसरूपम् (देववीतये) ऐश्वर्यमुत्पादयितुं (भराय) धारयितुं (सुतम्) स्वतःसिद्धं (संसृज) ध्यानविषयीकुरुत ॥६॥